न्यूज एक्सपोज, इंदौर।
सरकार बेढंगी बाल श्रम की नीति ने ऐसा उलझाकर रखा है कि शिक्षा व स्वास्थ्य की कड़ी से अलग होकर गरीब बस्तियों का बालपन काम करने पर मजबूर है। राजीव गांधी आवास योजना के तहत जहां गरीब बस्तियों के बाशिंदों को शहर के बाहर भेजा तो जहां है,लेकिन वहां शिक्षा की बेहतर व्यवस्था है या नहीं जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। कुछ इस तरह के हालात की जमीन हकिकत जानने की कोशिश एक सर्वे रिपोर्ट में की गई है।
हाल ही में दीन बंधु सामाजिक संस्था द्वारा शहर की 10 गरीब बस्तियों में बाल श्रम को लेकर सर्वे किया गया। इस सर्वे में 88 बाल श्रम से जुड़े बच्चों की दिनचर्या, रहन-सहन, कार्य का प्रकार, शाररीक व मानसिक तनाव, वेतन आदि के बारे में चर्चा की गई। सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए है। 88 बच्चों में से 65 फीसदी बच्चे शारीरिक व मानसिक चुनौंतियों का सामना कर रहे हैं। इसी तरह 83 फीसदी बच्चों ने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। इसमें 36.4 बच्चे ऐसे है जिन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है। यह सर्वे राकेश चांदौर, बेलू जॉर्ज, राजेंद्र बाजोड़े आदि ने किया है।
दीनबंधु सामाजिक संस्था ने यह अध्ययन झुग्गी बस्तियों के आठ से 18 वर्ष के आयु समूह वाले बाल श्रमिकोंं की स्थिति जानने के लिये किया।
संगठन की प्रमुख कार्यकर्ता बेलू जॉर्ज ने बताया कि हमने शहर की 10 झुग्गी बस्तियों के 88 बाल श्रमिकों को अध्ययन में शामिल किया। खासकर पन्नी बीनने, चटाई बेचने और कचरा इकट्ठा करने वाले बच्चे काम की अमानवीय परिस्थितियों, चोटों, चमड़ी से जुड़े स्वास्थ्यगत विकारों और पैरों में अक्सर बने रहने वाले दर्द से जूझ रहे हैं। ये बच्चे उदासी, असुरक्षा के भाव, चिड़चिड़ाहट और निराशा के भी शिकार हैं।
उन्होंने कहा कि बाल श्रम के कमजोर कानून, अस्थायी बसाहटों का बार..बार होने वाला विस्थापन और गरीबों की बड़ी आबादी के मुकाबले सरकारी स्कूलों की गंभीर कमी बाल श्रमिकों की बुरी हालत की अहम वजहों में शामिल हैं। आरटीई के तहत स्कूल पहुंंचा रहे शिक्षा विभाग पोल भी सर्वे ने खोल दी है।
सर्वे में तीन बालिकाओं ने खुलकर कहा कि काम के दौरान उनसे यौन उत्पीड़न किया गया। कई बच्चे ऐसे भी थे, जिन्होंने दबी जुबान में यौन उत्पीड़न की बात का कबूला। 88 में से 20 से अधिक बच्चे काम के दौरान वाइटर का नशा करते हैं, इनमें से अधिकांश वाइटनर के आदि हो चुके हैं।
संस्था ने यह रखी सिफारिशें...
सरकार बेढंगी बाल श्रम की नीति ने ऐसा उलझाकर रखा है कि शिक्षा व स्वास्थ्य की कड़ी से अलग होकर गरीब बस्तियों का बालपन काम करने पर मजबूर है। राजीव गांधी आवास योजना के तहत जहां गरीब बस्तियों के बाशिंदों को शहर के बाहर भेजा तो जहां है,लेकिन वहां शिक्षा की बेहतर व्यवस्था है या नहीं जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। कुछ इस तरह के हालात की जमीन हकिकत जानने की कोशिश एक सर्वे रिपोर्ट में की गई है।
हाल ही में दीन बंधु सामाजिक संस्था द्वारा शहर की 10 गरीब बस्तियों में बाल श्रम को लेकर सर्वे किया गया। इस सर्वे में 88 बाल श्रम से जुड़े बच्चों की दिनचर्या, रहन-सहन, कार्य का प्रकार, शाररीक व मानसिक तनाव, वेतन आदि के बारे में चर्चा की गई। सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए है। 88 बच्चों में से 65 फीसदी बच्चे शारीरिक व मानसिक चुनौंतियों का सामना कर रहे हैं। इसी तरह 83 फीसदी बच्चों ने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। इसमें 36.4 बच्चे ऐसे है जिन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है। यह सर्वे राकेश चांदौर, बेलू जॉर्ज, राजेंद्र बाजोड़े आदि ने किया है।
दीनबंधु सामाजिक संस्था ने यह अध्ययन झुग्गी बस्तियों के आठ से 18 वर्ष के आयु समूह वाले बाल श्रमिकोंं की स्थिति जानने के लिये किया।
संगठन की प्रमुख कार्यकर्ता बेलू जॉर्ज ने बताया कि हमने शहर की 10 झुग्गी बस्तियों के 88 बाल श्रमिकों को अध्ययन में शामिल किया। खासकर पन्नी बीनने, चटाई बेचने और कचरा इकट्ठा करने वाले बच्चे काम की अमानवीय परिस्थितियों, चोटों, चमड़ी से जुड़े स्वास्थ्यगत विकारों और पैरों में अक्सर बने रहने वाले दर्द से जूझ रहे हैं। ये बच्चे उदासी, असुरक्षा के भाव, चिड़चिड़ाहट और निराशा के भी शिकार हैं।
उन्होंने कहा कि बाल श्रम के कमजोर कानून, अस्थायी बसाहटों का बार..बार होने वाला विस्थापन और गरीबों की बड़ी आबादी के मुकाबले सरकारी स्कूलों की गंभीर कमी बाल श्रमिकों की बुरी हालत की अहम वजहों में शामिल हैं। आरटीई के तहत स्कूल पहुंंचा रहे शिक्षा विभाग पोल भी सर्वे ने खोल दी है।
सर्वे में तीन बालिकाओं ने खुलकर कहा कि काम के दौरान उनसे यौन उत्पीड़न किया गया। कई बच्चे ऐसे भी थे, जिन्होंने दबी जुबान में यौन उत्पीड़न की बात का कबूला। 88 में से 20 से अधिक बच्चे काम के दौरान वाइटर का नशा करते हैं, इनमें से अधिकांश वाइटनर के आदि हो चुके हैं।
संस्था ने यह रखी सिफारिशें...
- राज्य ऐसी नीतियों में कटौती करे जो शहरी गरीबों को शहर की मुख्यधारा से अलग करती है।
- बस्तियों को विस्थापित करने से पहले परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुविधाएं जुटाएं।
- शिक्षा का अधिकार कानून को मजबूरी से जमीनी स्तर का खड़ा करे।
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