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Tuesday 26 June 2012

मुराद के खातिर चढ़ा दी 150 पशुओं की बलि

न्यूजएक्सपोज, इंदौर।
किसी मर्ज ठीक हुआ तो किसी शादी हो गई, तो किसी की गोद भर गई। कुछ ऐसे ही कारणों ने मंगलवार को इंदौर में 150 से अधिक पशुओं की जान ले ली। पुलिस की चौकन्नी नजरें और प्रशासन का सख्त रवैयां शहर के किसी एक कोने में पहरेदारी देता रहा और पालदा के संजय नगर में सुबह से शाम तक सैकड़ों बकरों के गले पर तलवार चलती रही।
आसाढ़ की पहली पूर्णिमा यानी मंगलवार को इंदौर के पालदा स्थित संजय नगर में मरीमाता मंदिर पर जो हुआ शब्दों में बयान करना मुश्किल है। लेकिन इतना तो है कि जिम्मेदारों अनदेखी और प्राचीन बुद्धि के समझदार लोगों की टोली ने सैकड़ो बकरों की बलि देकर जता दिया कि प्रदेश के व्यावसायिक राजधानी में अभी भी हैवानियत जिंदा है।
लाइव रिपोर्ट...
दोपहर 1 बजे जब मैं यहां पहुंचा तो मंदिर के पास ही 40 से अधिक बकरों बलि दी जा चुकी थी, कुछ की दी जा रही थी। समझदार इंसानों में से एक से पूछा तो बताया कि यहां मरीमाता का मंदिर है। यहां हर साल असाढ़ की पहली पूर्णिमा पर बकरें की बलि दी जाती है, जिससे माता खुश होती है। मैंने जब इस इंसान से बलि का इतिहास खुरेदने की कोशिश की तो वह बस इतना कह पाया कि बचपन में दादा के साथ यहां आना शुरू हुआ था, जो आज तक जारी है। दोपहर 3 बजे तक 70 से अधिक बकरों की बलि दी जा चुकी थी। भक्त आते और यहां खड़े गंडासा धारी को बकरा पकड़ा देते। गंडासा धारी भी अपनी मर्दाइंगी दिखाते हुए एक वार में ही गर्दन और शरीर अलग कर देता। दो भाग में बंट चुका बकरा अभी चिल्लाते हुए, समझदारों के कृत्य पर शर्मसार हो जाता। इसके बाद जो भक्त बकरा लाता वह बोरी में दोनों हिस्सों को साथ ले जाता। यहां किसी ने बताया कि जिसकी मुराद पूरी और जो मुराद मांगने आता है, उसे बकरे की बलि देनी पड़ती है, तभी माता मुराद पूरी करती है। शाम 5 बजे तक बकरों का आकड़ा 100 संख्या पार कर गया था। इसके बाद रहा नहीं गया, और मैं समझदार इंसानों उनके काम पर छोड़ निकल गया।
इस तरह की परपंरा बंद होना चाहिए, हम मामले की जांच करवा रहे हैं, इससे बाद ही कुछ कह पाएंगे।
आलोक सिंह, एडीएम
आपसे से ही मामले की जानकारी मिल रही है। अभी मौके पर जाकर देखते हैं। उससे बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
आनंद कुमार यादव, थाना प्रभारी, भंवरकुआ थाना
कल ही हम प्रशासन व पुलिस इस मामले पत्र लिखकर जानकारी मांगेगे। पुलिस का दायित्व था कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।
सुधीर खेतावत, पशु पे्रमी

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