शहर से 60 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव बसा हुआ है, जहां किसी के घर चुल्हा न जले तो दूसरे के घर से रोटी आती है...कोई एक बीमार हो जाए तो पूरा गांव मिलकर दुआ करता है। यहां क्या दीवाली की जगमग और ईद की मिठास...सबकुछ एक सा लगता है। यही नहीं इस गांव में पिछले 28 वर्षो से एक विवाद तक नहीं हुआ है। यह किसी काल्पनिक गांव को लेकर महज विचार नहीं है। इंदौर से 60 किलोमीटर बीच जंगल में बसा ग्राम थरवर इन विचार को हकिकत में बदलता है। इस गांव को मध्यप्रदेश हाईकोेर्ट ने विवादविहीन घोषित किया है। यहां पड़ोसी परेशान भी कभी होते हैं, तो इसलिए कि उनका पड़ोसी तकलीफ में होता है। दीवाली के दिए और ईद का शीर-खुरमा यह उतनी ही शिद्द्त से बनाते है, जितना एक आम हिंदू या मुस्लिम परिवार में मनता है। न्यूज एक्सपोज, इंदौर।
इंदौर 60 किमी दूर बसे थरवर ग्राम को विवादविहीन गांव का तमगा लगा हुआ है। लगे भी क्यों न गत 28 वर्षो से गांव में एक भी विवाद नहीं हुआ है। वर्ष 2001-02 में मण्डलेश्वर में लगे जिला शिविर में मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर द्वारा थरवर को विवादविहीन ग्राम घोषित किया था। 10 वर्ष बीतने के बाद भी गांववालों ने इस तमगे का गौरव बरकरार रखा है।
ग्राम के सरपंच नरेंद्र बेनीवाल ने बताया कि वर्षो से इस गांव में विवाद नहीं हुआ है। कभी कभार विवाद होता भी है तो आपसी सामंजस्य से निपटारा कर लेते है। कुछ ऐसे भी विवाद हुए है, जो थाने तक पहुंचे जरुर लेकिन वहीं सुलझ भी गए। थरवर की बेहतरी के लिए गांव का हर बाशिंदा हमेशा आगे रहता है। भले ही सरकार की योजनाएं हो या फिर गांव की समस्या।
चमकने लगते है गलियारे
4 हजार आबादी वाले इस गांव में 600 से अधिक घर है। भले ही शहर के करीब बसे गांव आधुनिकता चख नहीं पाए हो, लेकिन थरवर में हर मूलभूत सुविधाएं मौजूद है। शहर से 60 किमी दूर जंगल में बसे इस गांव के 150 से अधिक पोल पर लट्टू नहीं सीएफएल लगे हुए है। शाम होते ही पूरा गांव दूध सी रोशनी से जगमगा उठता है। अन्य गांवों में भले योजनाओं में भ्रष्टाचार की बू आती हो, लेकिन यहां तो टीएससी योजना के अंतर्गत हर घर में पक्के शौचालय बने हुए है।
होती है जैविक खेती
सरपंच बेनीवाल ने बताया कि गांव के किसानों द्वारा जैविक खेती ही की जाती है। गांव के आस-पास लगी सैकड़ो हेक्टेयर कृषि भूमि में 80 फीसदी से अधिक जैविक खेती की जाती है।
9 किमी का सफर 45 मिनट में
इंदौर से करीब 60 किमी दूर बसे बीच जंगल में इस ग्राम तक पहुंचने में 2 घंटे का समय लगता है। इंदौर से 50 किमी चलने के बाद ग्वालु फाटक आता है, यहां तक पहुंचे में महज सवा घंटा लगता है। यहां से शुरू होता थरवर गांव पहुंचे का कष्टमय सफर। सागवान के उंचे तने वृक्ष, पथरीला रास्ता और रास्तों को काटता पहाड़ी नदियों का निर्मल जल। ग्वालु फाटक से थरवर तक पहंचे में 45 मिनट लग जाता है, जबकि रास्ता महज 9 किमी का ही है। खड़ी पहाड़ियों को काट कर रास्ता बनाया गया है। रात्रि में इस मार्ग से जाना किसी जोखिम से कम नहीं है।
इंदौर 60 किमी दूर बसे थरवर ग्राम को विवादविहीन गांव का तमगा लगा हुआ है। लगे भी क्यों न गत 28 वर्षो से गांव में एक भी विवाद नहीं हुआ है। वर्ष 2001-02 में मण्डलेश्वर में लगे जिला शिविर में मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर द्वारा थरवर को विवादविहीन ग्राम घोषित किया था। 10 वर्ष बीतने के बाद भी गांववालों ने इस तमगे का गौरव बरकरार रखा है।
ग्राम के सरपंच नरेंद्र बेनीवाल ने बताया कि वर्षो से इस गांव में विवाद नहीं हुआ है। कभी कभार विवाद होता भी है तो आपसी सामंजस्य से निपटारा कर लेते है। कुछ ऐसे भी विवाद हुए है, जो थाने तक पहुंचे जरुर लेकिन वहीं सुलझ भी गए। थरवर की बेहतरी के लिए गांव का हर बाशिंदा हमेशा आगे रहता है। भले ही सरकार की योजनाएं हो या फिर गांव की समस्या।
चमकने लगते है गलियारे
4 हजार आबादी वाले इस गांव में 600 से अधिक घर है। भले ही शहर के करीब बसे गांव आधुनिकता चख नहीं पाए हो, लेकिन थरवर में हर मूलभूत सुविधाएं मौजूद है। शहर से 60 किमी दूर जंगल में बसे इस गांव के 150 से अधिक पोल पर लट्टू नहीं सीएफएल लगे हुए है। शाम होते ही पूरा गांव दूध सी रोशनी से जगमगा उठता है। अन्य गांवों में भले योजनाओं में भ्रष्टाचार की बू आती हो, लेकिन यहां तो टीएससी योजना के अंतर्गत हर घर में पक्के शौचालय बने हुए है।
होती है जैविक खेती
सरपंच बेनीवाल ने बताया कि गांव के किसानों द्वारा जैविक खेती ही की जाती है। गांव के आस-पास लगी सैकड़ो हेक्टेयर कृषि भूमि में 80 फीसदी से अधिक जैविक खेती की जाती है।
9 किमी का सफर 45 मिनट में
इंदौर से करीब 60 किमी दूर बसे बीच जंगल में इस ग्राम तक पहुंचने में 2 घंटे का समय लगता है। इंदौर से 50 किमी चलने के बाद ग्वालु फाटक आता है, यहां तक पहुंचे में महज सवा घंटा लगता है। यहां से शुरू होता थरवर गांव पहुंचे का कष्टमय सफर। सागवान के उंचे तने वृक्ष, पथरीला रास्ता और रास्तों को काटता पहाड़ी नदियों का निर्मल जल। ग्वालु फाटक से थरवर तक पहंचे में 45 मिनट लग जाता है, जबकि रास्ता महज 9 किमी का ही है। खड़ी पहाड़ियों को काट कर रास्ता बनाया गया है। रात्रि में इस मार्ग से जाना किसी जोखिम से कम नहीं है।
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